''काव्य सरिता''
Tuesday 29 April 2014
बिखरे जज़्बात
अक्सर
बिखरे से रहे
जज़्बात मेरे
अँधेरों में
हवाओं की तरह
फ़िज़ाओं में
घूमते ही रहे
न किसी ने समझा
न समझने की कोशिश की
बस बादल की तरह
बरसते ही रहे
अक्सर
जज़्बात मेरे
---सुनीता
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